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    Silo's Message

    2 years, 7 months ago

    दुखों का निवारण
    सिलो, पुन्ता डे वाकास, मेन्डोज़ा ४ मई १९६९

    यदि आप ऐसे व्यक्ति को सुनने आए हैं जो ज्ञान संचार करता है, तो आप गलती कर गए हैं, क्योंकि सच्चा ज्ञान किताबों या भाषणों द्वारा संचारित नहीं होता — सच्चा ज्ञान आपकी चेतना की गहराई में होता है, उसी तरह जैसे सच्चा प्यार आपके हृदय की गहराई में होता है। यदि आप निन्दकों और पाखंडियों के उकसावे में आकर इस व्यक्ति को सुनने आए हैं ताकि आप जो कुछ भी आज सुने उसका आगे चलकर उसी के खिलाफ उपयोग करें, तो आप गलती कर गए हैं क्योंकि यह आदमी ना तो आपसे कुछ मांगने और ना ही आप का इस्तेमाल करने के लिए आया है, क्योंकि उसे आपकी जरूरत नहीं है।

    आप ऐसे व्यक्ति को सुन रहे हैं जो ब्रह्मांड के नियमों को नहीं जानता, जो इतिहास के नियमों को नहीं जानता, जो विश्व के मानवों को नियंत्रित करने वाले संबंधों के बारे में अनजान है। शहरों एवं उनकी बीमार महत्वाकांक्षाओं से बहुत दूर इन ऊंची पहाड़ियों में, यह व्यक्ति आपकी चेतना को संबोधित करता है। वहां पर शहरों में जहां प्रतिदिन संघर्षमई है — आशा मौत का शिकार होती है – जहां प्यार के बदले नफरत मिलती है, जहां क्षमा के बदले प्रतिशोध मिलता है, अमीरों एवं गरीबों के शहरों में इंसानों की विशाल आबादियों पर दुख एवं क्लेशों का भारी बोझ पड़ गया है। जब आपके शरीर में दर्द होता है, आप दुखी होते हैं। जब भूख सताती है, आप दुखी होते हैं। आप केवल अपने शरीर के दर्द एवं भूख से दुखी नहीं होते अपितु इन दुखों को देने वाली बीमारियों के फलस्वरूप भी दुखी होते हैं।

    हमें दो प्रकार के दुखों में अंतर समझना होगा। बीमारी से होने वाला दुख जिसे विज्ञान की प्रगति से दूर किया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे भूख को न्यायपूर्ण शासन से दूर किया जा सकता है। दुख ऐसे भी होते हैं जो आपके शरीर की बीमारी पर निर्भर नहीं होते बल्कि बीमारी द्वारा पैदा होते हैं। यदि आप अपंग हैं, यदि आप देख नहीं सकते, यदि आप सुन नहीं सकते, आप दुखी होते हैं। हालांकि यह सभी दुख आपके शरीर या शरीर की बीमारियों से पैदा हुए, यह सब आपके मन के दुख हैं।

    एक ऐसा दुख भी है जो विज्ञान की प्रगति या न्यायपूर्ण शासन से दूर नहीं होता। यह दुख जो केवल मन का दुख है, वह घटता है आस्था के समक्ष, जीवन के आनंद के समक्ष, और प्रेम के समक्ष। आपको समझना होगा कि इस दुख की जड़ हमेशा उस हिंसा पर आधारित होती है जो कि आपके अपने चैतन्य में है। आप दुखी होते हैं क्योंकि आपको डर है अपना सब कुछ खोने का, या उसका जो आप खो चुके हैं, या उसका जिसे पाने के प्रति आप निराश हैं। आप दुखी होते हैं, आपके अभाव से अथवा इसलिए कि आप आम तौर पर डरे रहते हैं।

    तो यह है मानवता के बड़े दुश्मन: बीमारी का भय, गरीबी का भय, मृत्यु का भय, अकेलेपन का भय। यह सभी दुख आपके मन के हैं एवं आप की आंतरिक हिंसा — हिंसा जो आपके मन में है, उसे प्रकट करते हैं। ध्यान दीजिए कि किस तरह हिंसा हमेशा आकांक्षाओं से पैदा होती है। इंसान जितना अधिक हिंसक होगा उसकी इच्छाएं उतनी ही अधिक घटिया और कुंठित होंगी।

    मैं आपको बहुत समय पहले घटित एक कहानी सुनाता हूं।

    एक मुसाफिर था जिसे लंबी यात्रा करनी थी। उसने अपने जानवर को एक गाड़ी में जोता और अपनी बहुत दूर मंजिल की यात्रा पर निकल पड़ा जहां पर उसे नियत समय में पहुंचना था। उसने जानवर का नाम रखा ‘जरूरत’ और गाड़ी का नाम रखा ‘चाहत’। गाड़ी के एक पहिए को ‘सुख’ और दूसरे पहिए को ‘दुख’ नाम दिया। हमारा यात्री अपनी गाड़ी को कभी दाएं कभी बाएं करता हुआ, अपनी मंजिल की ओर बढ़ता रहा। गाड़ी जितना तेज चलती उसके एक ही धुरी से जुड़े दोनों पहिए सुख और दुख भी उतनी तेजी से घूमते हुए ‘चाहत’ की गाड़ी को ढो रहे थे।

    पर यात्रा लंबी थी और कुछ समय बाद यात्री उकता गया। उसने अपनी गाड़ी को सजाने का निर्णय लिया और हर तरह की सुंदर वस्तुओं से उसे सजाने लग गया। लेकिन वह अपनी ‘चाहत’ नामक गाड़ी को जितना अधिक संवारता, ‘जरूरत’ के लिए बढा हुआ भार खींचना उतना ही मुश्किल होता जाता। मोड़ों और तीखी ढलानों पर बेचारा जानवर ‘चाहत’ नामक गाड़ी को खींचते हुए बहुत थक जाता। और कच्चे रास्ते पर सुख और दुख, दोनों पहिए, जमीन में धंस जाते।

    एक दिन हमारा यात्री बहुत ही निराश हो उठा क्योंकि रास्ता अभी लंबा था और वह अपनी मंजिल से अभी भी बहुत दूर था। उसने उस रात रुक कर गंभीर चिंतन करने की सोची, और ऐसा करते समय उसने अपने पुराने मित्र ‘जरूरत’ की हिनहिनाहट सुनी। संदेश को समझते हुए अगली सुबह जल्दी उठकर उसने गाड़ी पर की सजावट को हटाकर उसके भार को हल्का कर दिया। अब वो एक बार फिर से अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा और उसका जानवर ‘जरूरत’ गाड़ी को तेजी से खींचने लगा। फिर भी वह बहुत समय गंवा चुका था — समय जो वापस नहीं आ सकता।
    अगली रात उसने फिर से गंभीर चिंतन किया और अपने मित्र के एक और संदेश से समझा कि अब उसे दोगुना कठिन काम करना था क्योंकि इसमें कुछ त्यागने की बात थी। सुबह होते ही उसने चाहत की गाड़ी त्याग दी । सच है कि ऐसा करने पर उसका सुख का पहिया छूट गया लेकिन साथ ही उसका दुख का पहिया भी छूट गया। इस तरह चाहत की गाड़ी त्याग कर वो अपने ‘जरूरत’ नामक जानवर पर सवार होकर हरे-भरे मैदानों से होता, अपनी मंजिल पर पहुंच गया।

    समझिये किस तरह इच्छा आपको फंसाती हैं। लेकिन ध्यान दें की इच्छाएं अलग–अलग तरह की होती हैं। कुछ इच्छाएं कुंठित होती हैं तो कुछ अधिक उन्नत। इच्छाओं का उत्थान करें, इच्छाओं का शुद्धिकरण करें, इच्छाओं से मुक्ति पाएं। यह करते हुए आपको निश्चित रूप से सुख के पहिए का बलिदान करना होगा पर आप दुख के पहिए से भी मुक्त हो जाएंगे।

    इच्छाओं से प्रेरित, मनुष्य के भीतर हिंसा उसकी चेतना में केवल एक बीमारी के रूप में सीमित नहीं रहती – यह समाज एवं अन्य लोगों को भी प्रभावित करती है। जब मैं हिंसा की बात करता हूं तो यह मत समझिए कि मैं केवल सशस्त्र युद्ध की बात कर रहा हूं, जहां पर कुछ लोग अन्य लोगों को नष्ट कर डालते हैं । वो शारीरिक हिंसा का केवल एक रूप है।

    एक आर्थिक हिंसा भी होती है । आर्थिक हिंसा वह है जिसमें आप दूसरों का शोषण करते हैं; आर्थिक हिंसा तब होती है जब आप दूसरों से चोरी करते हैं, जब आप दूसरों के साथ भाईचारा ना रखकर एक भक्षी की तरह उन्हें अपना शिकार बनाते हैं।

    जातीय हिंसा भी हिंसा का एक रूप है। या क्या आप सोचते हैं कि जब आप किसी अपने से अन्य जाति के व्यक्ति पर अत्याचार करते हैं, तो वह हिंसा नहीं है? क्या आप यह सोचते हैं कि जब आप किसी अपने से भिन्न जाति के व्यक्ति का अहित करते हैं तो वह हिंसा नहीं है?

    और एक धार्मिक हिंसा भी है – जब आप किसी अपने से भिन्न धार्मिक विश्वास के व्यक्ति को काम नहीं देते, उसके लिए द्वार बंद कर लेते हैं, या उसे निकाल बाहर करते हैं, क्या आप यह सोचते हैं कि यह हिंसा नहीं है? जब आप किसी अपने से भिन्न धार्मिक विश्वास के लोगों के खिलाफ घ्रिणा के शब्दों का प्रयोग कर, उनको घेरकर, अपने समाज से उनका बहिष्कार कर देते हैं, उन्हें उनके परिवार में ही अलग-थलग करके, उनके चाहने वालों से भी अलग कर देते हैं, क्या आप यह सोचते हैं कि यह हिंसा नहीं है?

    कुछ अन्य प्रकार की भी हिंसायें है जो संकुचित नैतिकता द्वारा लादी गई है। आप अपनी जीवनशैली दूसरों पर थोपना चाहते हैं। आप अपने व्यवसाय दूसरों पर थोपना चाहते हैं। लेकिन किसने कहा कि आप अनुकरण करने योग्य उदाहरण हैं? यह आपसे किसने कहा कि आप अपनी पसंदीदा जीवनशैली दूसरों पर थोप सकते हैं? आपकी जीवनशैली में ऐसा कौन सा आदर्श, कौन सा उदाहरण है, कि आपको उसे थोपने का अधिकार मिल गया? तो यह हिंसा का एक और रूप है।

    केवल आंतरिक विश्वास और गंभीर आंतरिक चिंतन ही आपके एवं दूसरों के अंदर की और आपके आसपास फैली हिंसा को दूर कर सकते हैं। दूसरे सभी रास्ते झूठे हैं और हिंसा से छुटकारा नहीं दिलाते। यह विश्व विनाश के कगार पर है और हिंसा को समाप्त करने का कोई रास्ता नहीं है। झूठे रास्ते मत अपनाओ। ऐसी कोई राजनीति नहीं है जो हिंसा के उस इस उन्माद का हल दे सके। भूमंडल में ऐसा कोई राजनीतिक दल या आंदोलन नहीं है जो इस हिंसा को खत्म कर सके। झूठे रास्ते जो इस हिंसा को खत्म करने की आशा दिखाएं, उन्हें मत अपनाओ… मैंने सुना है कि विश्व भर में हिंसा एवं आंतरिक दुखों से छुटकारा पाने के लिए नौजवान गलत रास्ते अपना रहे हैं। वे इसका निदान नशीली दवाओं में ढूंढ रहे हैं। हिंसा को खत्म करने के लिए झूठे रास्ते मत अपनाओ।

    मेरे भाइयों व बहनों, सरल नियमों का पालन करो, यह नियम इन पत्थरों, इस बर्फ, और इस सूर्य की तरह सरल है जो हमें आशीर्वाद देता हैं। अपने अंदर शांति रखो और उसे दूसरों में भी बांटो।
    मेरे भाइयों व बहनों, अगर इतिहास में देखोगे तो ऐसा मानव पाओगे जो यातनाओं का चेहरा दिखाता है। जब उस वेदनामय चेहरे को देखो, यह याद रहे कि आगे बढ़ना जरूरी है, यह याद रहे कि आगे बढ़ना जरूरी है, और हंसना सीखना जरूरी है, और प्रेम करना सीखना जरूरी है।

    मेरे भाइयों व बहनों, मैं तुम्हें यह आशा देता हूं यह आनंद की आशा, यह प्यार की आशा, ताकि तुम अपने ह्रदय का उत्थान कर सको, और अपनी आत्मा का उत्थान कर सको, और ताकि तुम अपने शरीर का उत्थान करना ना भूले।

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Silo's Message is the expression of a spirituality that is personal, but also social. And with the passage of time, the truth of this spirituality is being confirmed in experience, as it continues to manifest in different cultures, nationalities, and social and generational strata.

A truth of this kind has no need for dogmas or fixed forms of organization for its functioning and development. For that reason, "Messengers" -- those who feel the Message and bring it to others -- emphasize the need not to accept any coercion concerning the freedom of ideas and beliefs, and to treat all human beings in the same way they would like to be treated.

At the same time, because they value interpersonal and social relations so highly, Messengers work against all forms of discrimination, inequality, and injustice.

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