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मानव बदलाव को सही दिशा नही दे पाता क्योकि जिसे बदलना चाहिये हम उसके बारे में जानते नही या यु कहिये मानते ही नही। अपने अच्छाई बुराई को हमे स्वम् में बदलना चाहिये मगर वो बदलाव में दुसरो में खोजते हैं जिसके कारन हम लोगो से बाद बिबाद करते हैं ये बदलाव करो ये करो वो मत करो। मगर हमे कोई नही बतलाता कैसे करो ताकि हम वो करके अपने अन्दर बदलाव पा सके ।
इसी लिये सिलो ने कहा हैं कि हमे अपने लिये भी कुछ अमूल्य समय निकालना चाहिये ताकि हम अपने आपको पहचान सके । अपने आंतरिक शक्ति को समझ ने के बाद हम सजग हो जाते हैं ।इसके लिये शांत होना होता हैं जब शान्ति से अपने ही अन्दर के गहराईयो में प्रबेश करते हैं आंतरिक गहराई में जहा हमे बास्तविक बदलाव का प्रमुख धुरी मिलता हैं उससे जुरते ही हम में बदलाव के लिये हमारी चेतना कार्य प्रारम्भ करती हैं मगर हमारे चेतना को एक मार्गदशक कि आबश्यक्ता होती हैं जो उन्हें उचित मार्ग दिखाये और उस मार्ग पर सफलता पूर्वक चलने के लिए शक्ति प्राप्ति तक जाने का मार्ग दिखाते हैं और साथ ही कार्य मे एकता को बनाये रखने के लिये सामंजस्य स्थापित करते हैं ये अहम भूमिका आपके आंतरिक मार्गदशक ही निभा पाते हैं जो सदैव आपके साथ होते हैं।
और यह कार्य हमारे जीवन मे प्रत्येक पल चलता रहता हैं इसीलिये हमारे आंतरिक मार्गदशक मेरे साथ सदैव होते हैं । तभी हम अपने प्रविर्ती को बदल सकते हैं जिसे हमने पहले से धारण कर रखा था उसके बदलाव के बिना हमारा कोई भी बदलाव स्थाई नही हो सकता। हमने जो अपने परिवार समाज को देख कर बरे बरे विद्वानों को पढ़कर जो प्रवित्ति हमने पाई हैं वो मुझे अशांति में रखता हैं । सदैव कमी महसूस कराता हैं ,आनन्द नही मिलता हैं जीवन मे ।मीले भी तो कहा से क्योकि आपकी प्रवित्ति ही बेचेंन रहने की हैं । जब तक आप बेचेंन हैं तब तक आपकी सोच और कार्य भी आपकी बेचैनी बढ़ाने बाला ही होगा और आप अपने साथ अपने पूरे समाज को बेचेंन बना के राख देते हैं ।परिणाम देख कर लोग बदलना तो चाहते हैं इसी लिये संत फ़क़ीर नसा के जल में फसते हैं और अधिक बेचेंन हो जाते हैं जिसका बृहत परिणाम पागल पन,या आत्महत्या तक आप को ले जाता हैं।
क्यों कि हम बास्तविक बदलाव के केन्द्रबिन्दु तक पहुच ही नही पाते। यदि आप अपने आपको मानव कहते हैं तो एक बार अपनी आत्म परीक्षण अबश्य करे ताकि आप अपने मानवता को समझ सके।
फिर अगले अनुभव के साथ मिलते हैं
शान्ति शक्ति और आनन्द सभी के लिये।
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