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ये धर्म क्या है ?
जो धारन किया जाय वही धर्म हैं या जो हम कर रहे हैं आज वो धर्म हैं ? वास्तविकता क्या है ये तो समझना अनिवार्य हैं हम एक मानव हैं हमारा क्या धर्म है फिर हमारे कई रोल(भूमिका) हैं उसका क्या धर्म हैं जैसे माँ,बाप, भाई ,बहन, पति पत्नी, लड़के लड़की । क्या सबका एक ही धर्म हैं या अलग अलग ये सोचने के लीये चिंतन करना चाहिये ।मगर सभी मनवो का एक ही धर्म हैं मानवता । ये मनव का ही अलग अलग रोल हैं । यह में नही कहता ये हमारे मार्गदर्शक ग्रंथों में भी तो यही बताया जाता हैं ।गीता में श्रीकृष्ण ने धर्म का ब्याख्यान बहुत ही सरल और स्पस्ट किया हैं । आप जिसको धारण करते हो आश्रम,वर्ण, पंथ,नीति, उसको पालन करना ही आपका धर्म बनता हैं । क्योंकि सभी ब्यबस्था के अलग अलग कर्म हैं जिसको पालन करने का जो गुण आप मे हैं पालन करने में या यूं कहीये कार्य करने में जो आप सत्यनिस्ट हो कार्य करते हैं वो ही एक करता का धर्म होता हैं ।
मगर इस बदलाव के बयार ने हमे सुसुप्त बना दिया जिसके कारन हम अपने मूल को परिवर्तन होने से नही रोक पाये और बाजार बाद ने हमारे धर्म का मूलस्वरूप ही बदल दिया ।आज लोग मंदिर में जाना ,उपवास करना, ढेरो फूल का कचरा फैलाना टिका चंदन करके भगवान को खुस करने की क्रिया को धर्म मानते हैं जबकि यह पाखंड हैं जिसके प्रकाश से अन्ध भक्ति का जन्म होता हैं । जो जितना अर्थ धन खर्चा वो उतना अच्छा धर्मात्मा जो जितना समाज मे सोर मचाया वो उतना बड़ा धार्मिक हैं धर्म प्रचारकों को अच्छा भोजन,वस्त्र,दक्षिना मिले ये उसका भी जुगाड़ हैं जरूरत पूरा करने का ।
आप खुद ही चिंतन मनन करे फिर बताये फर्क धर्म और पाखंड में । फिर अगले करी में मिलते हैं ।
शांति शक्ति और आनन्द सभी के लीये ।
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