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    Ramesh Jha

    3 years, 1 month ago

    आज के साप्ताहिक zoom मीटिंग में सिलो के संदेश का 4 पाठ पढ़े।साथ ही मनन भी किया इस पाठ के प्रमुख सीख और भावार्थ साझा कर रहा हु आप अपना महत्व पूर्ण सुझाव भी अबस्य लिखें ये आपसे आग्रह हैं ।
    आज का पाठ निर्भरता था यह शब्द अपने आप मे जीवन के नीव से प्रारम्भ होती हैं ।क्योंकि हम सोचते हैं हम करते हैं हम अनुभव करते हैं और साथ ही परिणाम को भी सहस स्वीकार करते हैं ।ये सब हम करते हैं मगर हम फिर भी कहते हैं ये तो हम नही कर सकते हैं । ये स्पस्ट हमारे निर्भरता को दरसाता हैं निर्भरता हमे प्राब्लम्बी बना देता हैं यह निर्भरता प्राब्लमबी का ही दूसरा स्वरूप हैं । जबकि हम अपने आपको स्वाबलम्बी होने की बात करते जबकि हम स्वाबलम्बन को स्वाबलम्बी समझ लेते है । स्वाबलम्बन उपार्जन से ज़ुरा होता हैं ,जबकि स्वाबलम्बी मानबीए ब्यभार से ये मूल फर्क हैं ।
    जब कि स्वाबलम्बी ब्यक्तित्वके लोगो का अपना स्वप्न होता हैं अपना जीवन उद्देश्य और रणनीति जिसका अपना हो और उसपे वो अमल करने बाला भी स्वम् होता हैं । जिसमे अपने कार्यो को स्वम् मूल्यकन करने की शक्ति होती हैं और रणनीति में संसोधन करता हैं । जो इस कार्य को ही नही करते वो दूसरे के लिये योजना बनाते हैं ,दुसरो के माध्यम से अपने स्वप्न को पूरा करना चाहते हैं। यही से प्रबलंबिता प्रारम्भ होती हैं दूसरे ने कार्य नही पूरा किया, किसी भि परिस्थिति में फिर मेरा स्वप्न उद्देश्य रणनीति सब दूसरे की अधिनस्त हो जाता है । एक मिल के तमाम श्रमिक कार्य बन्द कर देता हैं तो सारा उत्पादन बन्द हो जाता तब तो स्पस्ट हैं कि ये स्वम् पर आश्रित नही हैं ये दोनों तरफ समान रूप से निर्भरता को बढ़ाता हैं । इसीलिये स्वाबलम्बन के साथ निर्भरता भी बढ़ जाता हैं जब कि इस से मानव को भूख की समस्या का समाधान किया जा सकता हैं पर यह निर्भरता की आदत बिकसित हो जाता जिसके कारन हमारी आंतरिक शक्ति कमजोर होने लगती हैं क्योंकि हम अपने ऊर्जा को निर्भरता के मार्ग पर चलने के लिये बल देते हैं ।हमे क्या और कैसे करना है वो दूसरा तैय करता हैं इसी लिये हम अपने ऊर्जा का उपयोग करते ही नही बस बल का प्रयोग करते हैं ।
    मानव की निर्भरता अपने आंतरिक मार्गदर्शक,आंतरिक शक्ति पर होना चाहिये ताकि स्वाबलम्बी बन सकें अपने शक्ति को सही मार्ग पर उर्जात्मक बल प्रदान करे ।
    आज बस इतनी ही फिर अगले अंक में।
    शान्ति शक्ति और आनन्द ।

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