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यदि एक मानव की बात की जाय तो हम दो के मिलन से एक होते हैं । जब यह शरीर धारण करता है उसके निश्चित अवधि में इसके अन्दर संचार उतपन होता हैं इसे प्राणवायु या आत्मा और भी कई नमो से जानते हैं अधिक तह लोग ।हम अपने शरीर को स्पर्श कर सकते देख सकते हैं छाया या दर्पण में ।मगर जो शरीर के अन्दर जो कार्य संचालन करबाने का कार्य करता हैं क्या कभी हम उसको छू कर या दर्पण में देख पाये हैं क्या ?
हमारा शरीर वही करता हैं जिसे हमारा मस्तिष्क जो आदेश देता हैं मस्तिष्क वही आदेश देता हैं जो आत्मा (चेतना) में
कल्पना होता हैं ।जबकि मन इसमेंसे दो को मार्गदर्शन देता हैं । कभी कभी चेतना इसका विरोध करता हैं मगर समय काल परिस्थि का दुहाई देकर अपने आत्मा के आवाज को अनसुनी कर देते है जिसके कारन हमें ज्यादातर असफल होना पड़ता हैं । यदि हम सफल भी हो जाते हैं तो न हमे शान्ति मिलती हैं और ना आनन्द ।हम अपने संचित शक्ति को प्रयोग करते हैं हमारा शक्ति राह(रास्ता) भटक कर हमे अपने बास्तविक लक्ष्य के बदले सिर्फ एक उद्देश्य को पूरा करता हैं जिससे हमे तत्कालीन खुसी की अनुभव होती हैं मगर वो तभीतक होता हैं जब तक आप मे शक्ति हैं ।आपने अपनी शक्ति को भटकाव में खो दिया अशान्ति के कारन आपको कार्य से जो शक्ति मिलनी चाहिए वो नही मिलापायी जिसके वजह से आप अपने आपको सदैव मानसिक तंगी में पाते हैं ।इसीलिए सिलो ने अपने अनुभव लिखे हैं कि किसी भी मानव को पहले अपने आंतरिक एकता को कायम करना चाहिये ताकि हमारे हृदय मस्तिष्क और शरीर एक हो कर कार्य करे ताकि वह कार्य आपको शान्ति शक्ति और आनन्द प्रदान करेगा ।
आज बस इतना ही ,फिर अगले अनुभव के साथ मिलते हैं ।
शान्ति शक्ति और आनन्द सभी के लिये।
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